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भाई बचने का कोई रास्ता नहीं है"...दोस्त को आई वो सबसे डरावनी कॉल, जिसने उसको झकझोर कर रख दिया...


दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में लगी भीषण आग ने 43 जिंदगियों को एक ही झटके में खत्म कर डाला था। आसपास के राज्यों से आकर मजदूरी करने वाले लोगों की मौत के कई दिन बाद तक परिवारों में चूल्हे तक नहीं जले। क्योंकि उनके अपने तो इस भीषण आग में राख हो गए। जो निकल सका वो बच गया अन्यथा जो जहां था, वहीं निढाल होकर अकाल मौत के मुंह में समा गया। हर तरफ आग की लपटें, धुआं और अंधेरा था। कोई करता भी तो क्या, सांस लेना तक मुश्किल था। कई ऐसे भी थे कि उन्हें अपनी मौत सामने दिख रही थी। इन्हीं में बिजनौर निवासी मुशर्रफ भी था।
आग की लपटों में घिरे मुशर्रफ ने अंतिम घड़ी में अपने जिगरी दोस्त के मोबाइल पर कॉल कर उसे चंद सेकेंड्स में आने वाली मौत और इस खौफनाक हादसे की जानकारी दी और उससे एक वादा लिया। फोन सुन रहे दोस्त के जीवन के ये सबसे डरावनी कॉल थी। वह सब कछ जानते हुए भी कुछ कर पाने में असमर्थ। उसने दोस्त को फोन पर ढाढस बंधाया लेकिन फोन से दोस्त की आवाज आनी बंद हो चुकी थी। ‘फैक्टरी में आग लग गई है और चारों ओर लपटें उठ रही हैं। धुएं के कारण सांस लेना भी मुश्किल है और मदद की कोई उम्मीद भी नहीं। कुछ ही देर में मेरी मौत होने वाली है। मोनू मेरे दोस्त मेरे मरने के बाद मेरे परिवार का ख्याल रखना।’ 
यह बात दिल्ली की अनाज मंडी में हुए हादसे में मारे गए मुशर्रफ ने अंतिम क्षणों में अपने दोस्त शोभित उर्फ 'मोनू' से मोबाइल फोन पर कही थी। रविवार का दिन था, सुबह करीब सवा पांच बजे नगीना थाना क्षेत्र के गांव टांडा माईदास निवासी मुशर्रफ की गांव के ही अपने दोस्त शोभित अग्रवाल उर्फ मोनू के मोबाइल फोन पर कॉल आई। मुशर्रफ ने बताया कि फैक्टरी में आग लग गई है और वह आग की लपटों में फंस गया है। चारों ओर धुआं ही धुआं घुटा हुआ है। जिसके कारण सांस लेने में भी मुश्किल हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे कुछ ही क्षणों में उसकी मौत हो जाएगी। उसके साथ कई अन्य साथी भी हैं, किसी के पास बचने का कोई रास्ता नहीं है और मदद की भी उम्मीद टूट चुकी है।
मौत को करीब देख मुशर्रफ के सामने अपने मासूम बच्चों का चेहरा, परिवार की उम्मीद और टूटते सपने सब एक साथ खडे़ थे। ऐसे में उसे अपने दोस्त से ही कुछ आशा थी, लेकिन लाचार मोनू भी ऐसे क्षणों में कुछ नहीं कर सका। मुशर्रफ फफक कर रो रहा था और मोनू से कह रहा था कि वह उसके परिवार का हर हाल में ख्याल रखे। बात करते-करते ही मुशर्रफ की सांसें थम गईं। शोभित ने दोस्त को हिम्मत बंधाई, लेकिन सब नाकाम। 'अच्छा भैया! बचने को कोई रास्ता नहीं है मोनू, घर में सब को मेरा सलाम कहना, मेरे बच्चों का ख्याल रखना.... कहते-कहते मुशर्रफ की सांसे सुस्त पड़ती गईं। एक दोस्त दूसरे दोस्त से हमेशा के लिए अलविदा कह चुका था।

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